Descriptions
ए.के.-47 | |
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वजन | 4.3 kg (9.5 lb) रिक्त मैगज़ीन सहित |
लंबाई | 870 mm (34.3 in) लकड़ी के पुट्ठे सहित 875 मि॰मी॰ (2.9 फीट) folding stock extended 645 मि॰मी॰ (2.1 फीट) stock folded |
बैरल लंबाई | 415 मि॰मी॰ (1.4 फीट) |
कारतूस | 7.62x39mm M43 |
डिजाइनिंग का इतिहास
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मन सेना ने असाल्ट राइफल की संकल्पना विकसित की, उन्होंने देखा की ज्यादातर मुठभेडे ३०० मीटर के दायरे के भीतर ही होती थी, जबकि उस जमाने में जो राइफले और कारतूस मिलते थे उनकी शक्ति इतनी कम दूरी की लड़ाई के हिसाब से ज्यादा होती थी। इस लिए सेना ने इस प्रकार की राइफल और कारतूस की मांग की जिसमे सबमशीन के गुण (बड़ी मैगजीन और कई मोड़ पे गोली चलाने की सुविधा हो) भी हो और यह ३०० मीटर के दायरे में काम करती हो। इसके परिणाम स्वरूप जर्मन सेना की एस टी जी ४४ राइफल सामने आयी हालांकि ये इस प्रकार की पहली राइफल नहीं थी। इटली की सेना भी सेई-रिगोटी और सोवियत सेना की फेदारोव एव्तामोट राइफल भी इसी श्रेणी की थी। लेकिन जर्मन सेना ने ये राइफले बड़े पैमाने पर प्रयोग की थी जिससे उन्हें इसका मूल्यांकन करने का मौका मिल गया। सोवियत सेना भी जर्मन सेना के सिद्धान्तो और दर्शन से प्रभावित हुई और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इनका पालन शुरू कर दिया। मिखाइल क्लाशिनिकोव ने अपना हथियार डिजाइनर का कैरियर हास्पिटल में जख्मी मरीज के रूप में भर्ती होने के बाद शुरू किया था। उनके द्वारा विकसित किए गए पहले कार्बाइन डिजाइन को अस्वीकार कर दिया गया, लेकिन उन्होंने १९४५ में हुए असाल्ट राइफल डिजाइन प्रतियोगिता में भाग लिया। उनका माडल ३० गोलियो वाला गैस बेस डिजाइन था। इसे एके१ और एके२ का कोड नाम दिया गया था।
1946 में उनके एक सहायक अलेक्जेंडर जाय्स्तेव ने इसमे कई सुधर सुझाए जो उन्होंने आनाकानी के बाद मान लिए। अंत में उनके 1947 माडल में सादगी, भरोसेमंदी और हर हाल में काम करने की विशेषता थी, 1949 में उनके इस माडल को सोवियत सेना ने 7.62 कलाश्निकोव राइफल के रूप में स्वीकार कर लिया।
डिजाइन संकल्पना
कलाश्निकोव राइफल की खासियते ये रही है सरल डिजाइन, काफी छोटा साइज तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में आसानी, मिखाइल कलाश्निकोव ने इस बात से हमेशा इनकार किया है कि उनकी राइफल जर्मन एस.टी.जी 44 की नक़ल है, हालांकि सारे सबूत उनके ख़िलाफ़ है, हम इस राइफल को पहले की समस्त राइफल तकनीको का मिश्रण मान सकते है, इसके लोकिंग डिजाइन को एम 1 ग्रांड राइफल से लिया गया है, इसका ट्रिगर और सेफ्टी लोक रेमिंगटन राइफल माडल 8 से लिया गया है, जबकि गैस सिस्टम और बाहरी डिजाइन एस.टी.जी.44 से लिया गया है, कलाश्निकोव की टीम की पहुँच इन सभी हथियारों तक थी और इस प्रकार उसे पहिये का पुन आविष्कार करने की जरूरत नहीं थी, ख़ुद उन्होने माना था कि किसी चीज का आविष्कार करने से पहले उस क्षेत्र में मौजूद हर चीज का अध्यन कर लेना चाहिए और मैंने ख़ुद इस चीज को अनुभव किया है।
ग्राहक विकास इतिहास
उत्पादन के प्रारम्भिक चरण में इस राइफल को काफी समस्याओ का सामना करना पडा, पहले पहल इसके जो माडल सामने आए थे उनमे स्टाम्पड धातु शीट के रीसीवर लगे हुए थे, इसके गाइड और इजेकटर ट्रेल को वेल्ड करने में भी दिक्कत आती थी जिसके चलते इसे बड़े पैमाने पे अस्वीकार करना होता था, लेकिन उत्पादन रोकने के स्थान पर इसमे एक भारी मकिनिकल रीसीवर लगा दिया गया। यह एक मंहगा उपाय था लेकिन इसको करने के बाद उत्पादन की गति बढ़ गयी थी फ़िर कोई नए मकेनिकल रीसेवर नहीं लगाए जा रहे थे पहले की मोसिन नगाट राइफल के रीसीवर ही प्रयोग किए जा रहे थे, इस समस्या के चलते ही 1956 तक सोवियत सेना में ये राइफलें बड़े पैमाने पर वितरित नहीं की जा सकी, तथा इस दौरान एस के एस राइफले ही सेना को दी जाती रही, एक बार उत्पादन से जुडी दिक्कते सुलझते ही के नया माडल एकेएम् [एम् का अर्थ माडर्न ] सेना में दिया जाना शुरू किया गया। इस नए माडल में स्तामप्द शीट मेटल रीसीवर लगा था इसके बैरल के अंत में के मजाल ब्रेक लगा था जिससे रीकोइल के समय मजल ऊपर नहीं उठे, इसके अलावा इसमे हैमर रीतर्दर भी लगा हुआ था ताकि आटोमेटिक गोली चलाने के समय सीमित सख्या में ही राऊंड चले और हथियार को कोई नुक्सान नहीं हो, यह राऊंड रीड्योसरभी कहलाता है।
ये नया माडल पुराने माडल से १/३ कम भारी था यही माडल आज सबसे ज्यादा प्रचलन में है तथा इसका ही उत्पादन आज तक सबसे ज्यादा हुआ है, यधपि आम तौर पर ये भेद किस्सी को ज्ञात नहीं है। सभी राइफलों को एके47 कहना ठीक नहीं है इनमे से कुछ एकेएम् भी है इनका अन्तर आप साथ दिए चित्र में कर सकते है। एके 47 के कुल चार भेद इस प्रकार है:
टाइप 1 a/b एके ४७ का मूल माडल, 1 b को फोल्डिंग हेतु बदला गया था, इनके दोनों तरफ एक बड़ा छेद रहता था
टाइप 2A/B इसमे स्टील फोर्जिंग की गयी थी
टाइप 3A/B दूसरे माडल का अन्तिम रूप
टाइप 4A/B सबसे ज्यादा प्रयोग आने वाला माडल इसमे उन्नत किया गया रीसीवर लगाया गया था
विशेषता
इस राइफ़ल की खासयित है इसका सरल डिजाइन, छोटा आकार और बहुत कम लागत में बड़ी संख्या में निर्माण करने की सुविधा, इसकी कठोरता और भरोसेमंदी मिथक बन चुकी है, इसे आर्कटिक जैसी सर्दी पड़ने वाले इलाके को ध्यान में रखकर बनाया गया था इसमे बहुत ज्यादा कचरा फसने के बाद भी ये काम कर सकती है, लेकिन इसके चलते इसके निशाने उतने अच्छे नहीं रह जाते है, सोवियत लाल सेना इसे समूह में प्रयोग करने वाला हथियार मानती थी, इस का सामान्य जीवन काल २० से ४० साल माना जाता है जो इसके रखरखाव पे निर्भर करता है, कुछ एके ४७ के साथ संगीन भी लागा के दी जाती है
इस राइफल में निशाने लेने में आसानी हेतु एक लोहे का गेज पीछे की तरफ लगा होता है, राइफल के अगले सिरे पे भी निश्हना लगाने में सहोलियत देने के लिए गेज लगा होता है, इनको समायोजित करने के उपरांत प्रयोगकर्ता २५० मीटर तक निशाना आसानी से लगा सकता है इसके अंदरूनी भागो जैसे गैस चेम्बर, बोर आदी पर क्रोमियम की प्लेटिंग की जाती है जिस से इस राइफल की जिन्दगी बढ़ जाती है और इसमे जंग नहीं लगती है, आधुनिक काल के ज्यादातर कारतूसों के प्राइमर में पारे के अंश रहते हैं जो किसी हथियार को जंग लागाने और गलने में सहयोग देते है
आपरेटिंग चक्र
इस राइफल को सेम आटोमेटिक और आटोमेटिक दोनों तरीकों से चलाया जा सकता है इस गैस आप्रेताद राइफल में रीकोइल तकनीक से पुराने कार्तोस गिरते जाते अहि और इसके झटके से नए कारतूस आ जाते है
विघटित करना
इस राइफल को बड़ी सरलता से विघटित किया जा सकता है इसके संचालन और विघटन करने की तकनी आप संधर्ब में दिए गए मैन्युअल में देख सकते है
कारतूस
इस राइफल में 7.62×39 मिलीमीटर के कारतूस आते है जो 710 मीटर प्रति स्कैन्ड की गति से जाते है ये अधिकतम ४०० मीटर की दूरी पर जाते है।
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